Famous Ganesh Mandir in India in Hindi: भगवान श्री गणेश ज्ञान और बुद्धि केे देवता हैं। उनकी आराधना करनेे का अर्थ विद्या, बुद्धि, विवेक, यश, प्रसिद्धि और सिद्धि सहजता से प्राप्त होती है। हाथी के सिर वाले इस हिंदू देवता,जिन्हें पारंपरिक रूप से किसी भी बड़े उद्यम से पहले पूजा जाता है। गणेश का अर्थ लोगों का भगवान। इनको हिंदू पुराण कथाओं में कई नामों से वर्णित किया गया है, जैसे गणपति, गजानन, सिद्धिविनायक, वक्रतुंड इत्यादि। श्री गणेश सिर्फ हिंदुओं द्वारा भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में कई जगहों पर पूजे जाते हैैं। श्री गणेश भगवान शिव और देवी पार्वती के सबसे प्यारे पुत्र हैं। वो निराकार देव अंश के हैं जो भक्त के लाभ के लिए समाहित है।
श्री गणेश का बड़ा पेट हमें शिक्षा देती है कि हमें अच्छे बुराई बातों को पचाने की क्षमता होनी चाहिए। चाहि अनचाही बातों पर बिना सोचे समझे कुछ करने से पहले जरूरी है कि उन बातों को समझो जानो और उसके बाद ही उस काम को अंजाम दो।शिव महापुराण के अनुसार गणेश जी की शरीर का रंग लाल और हरा है। इस में लाल रंग शक्ति का और हरा रंग समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और उनके हाथ में कुछ गोल भारतीय मिठाइयों को पकड़े हुए दिखाया गया है, जिनमें से वे बेहद शौकीन हैं। उनका वाहन एक चूहा है, जो गणेश जी की क्षमता का प्रतीक है कि वह जो चाहते हैं उसे पाने के लिए कुछ भी पार कर सकते हैं। 10 दिवसीय गणेश चतुर्थी उन्हें समर्पित है।
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भारत के प्रसिद्ध गणेश मंदिर – Famous Shree Ganesh Mandir in India in Hindi
हिंदू धर्म के अनुसार किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है। विघ्नहर्ता श्री गणेश हर बाधा को दूर कर जीवन में सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की आराधना करने से सारी इच्छाएं पूरी होती है और हर कष्ट दूर होता है। पूरी दुनिया में गणेश जी के कई मंदिर है, जहां हर रोज लाखों लोग गणेश जी की आराधना करने आते हैं। जापान में गणपति जी की 250 मंदिर हैं और वहां गणेश जी को कमजीतों नाम से जाना जाता है। श्री गणेश जी को हिंदू धर्म के अलावा बौद्ध धर्म में भी पूजा जाता है। महायाना बौद्ध धर्म में इन्हें विनायक नाम से पूजा जाता है। तिब्बत, चीन और जापान में गणपति की नाचते हुए बहत सारे प्रतिमा देखने को मिलती है।
यूं तो भगवान श्री गणेश के बहुत सारे मंदिर हैं जहां भक्तों की भीड़ लगी रहती है, पर आज हम बताने जा रहे हैं भगवान श्री गणेश जी की कुछ ऐसे मंदिरों के बारे में जहां से कोई भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता। आइए जानते हैं श्री गणेश जी की ऐसे ही कुछ अलौकिक मंदिरों के बारे में।
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श्री सिद्धिविनायक मंदिर, मुंबई – Shri Sidhhi Binayak Ganesh Mandir, Mumbai
सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई के सबसे प्रसिद्ध मदिर है जो मुंबई के धार्मिक और ऐतिहासिक स्मारक के लिए जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर गणेश जी की 2.5 फीट ऊंची मूर्ति है, जो की मूर्ति को काले पत्थर के एक टुकड़े से बनाया गया है और भगवान गणेश की दो पत्नी सिद्धि और रिद्धि को गणपति जी की मूर्ति के दोनों तरफ रखा गया है। भगवान गणेश को सिद्धिविनायक कहे जाने के पीछे एक कारण है। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी के जिन मूर्तियों में उनके सूंढ डाईं की और होती है उनके ऐसे मंदिर को सिद्धिविनायक मंदिर कहा जाता है।
सिद्धिविनायक की महिमा अपरंपार है, वो भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। भगवान गणेश को समर्पित यह सिद्धिविनायक मंदिर सपनों की नगरी मुंबई के प्रभादेवी में स्थित है, जो कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस मंदिर का निर्माण 1612 में कराया गया था। यह मंदिर 5 मंजिला के हैं, जिसमें अस्पताल भी है और मुफ्त इलाज किया जाता है और इसके अलावा इसमें रसोईघर, प्रवचन ग्रुह और गणेश संग्रहालय भी है।
यह मंदिर लक्ष्मण विथु नाम के एक व्यक्ति द्वारा बनाया गया था। मंदिर के निर्माण के लिए देउबाई पाटिल नाम की एक धनी, निःसंतान महिला ने एक विश्वास के साथ वित्त पोषित किया था कि भगवान गणेश जी ने उन महिलाओं की इच्छाओं को पूरा करेंगे, जिनके कोई बच्चा नहीं हुआ है। लोकप्रिय मान्यता यह है कि सिद्धिविनायक गणपति मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने वाले किसी भी व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर कोई मंदिर परिसर में स्थापित चांदी के दो विशाल चूहों के कानों में अपनी इच्छा को फुसफुसाता हुआ बोलता है वह इच्छा सीधे भगवान गणेश जी तक पहुंच जाती है।
इसलिए मुंबई आने वाले यात्री और देश भर से बॉलीवुड सेलेब्रिटी, खिलाड़ी, राजनेता और भक्तों अक्सर इस गणपति मंदिर में पूजा करने के लिए जाते हैं, जो मुंबई में एक शीर्ष पर्यटक आकर्षण भी है। प्रतिदिन सुबह 5:30 से रात 10 बजे तक भगवान गणेश जी की दर्शन कर सकते हैैं। यहां मंगलवार को भक्तों की बहुत भीड़ लगती है, कभी कभी दर्शन के लिए कतार 2 किमी तक भी पहुंच जाती है। मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन से यह मंदिर 1.5 किमी और मुंबई एयरपोर्टट से 8 किमी की दूरी पर है।
दगडूशेठ हलवाई गणेश मंदिर, पुणे – Dugduseth Halwai Ganesh Mandir, Pune
पुणे के शिवाजी रोड में बना यह मंदिर भक्तों की आस्था को दर्शाता है। यह मंदिर महाराष्ट्र और भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है भारत के सबसे पुराने प्रसिद्ध और धनी गणेश मंदिरों में यह मंदिर सबसे उंचे स्थान में है। इस मंदिर का निर्माण पुणे की एक दगडूशेठ नामक हलवाई द्वारा करवाया गया था। 130 साल से भी अधिक पुरानी बात है जब श्री दगडूशेठ हलवाई और उनकी पत्नी लक्ष्मीबाई पुणे में रहते थे, तब वे अपने इकलौते बेटे को प्लेग महामारी में खो दिया। तब वे एक दयालु ऋषि से मिले, जिन्होंने उन्हे दुनिया के कल्याण के लिए पुणे में एक गणेश मंदिर बनाने के लिए कही।
फिर बहत सालों बाद, जब लोकमान्य तिलक ने पहले महाराष्ट्र में वार्षिक गणेश चतुर्थी समारोह शुरू किये, फिर इसके बाद लोगों में इसकी दिलचस्पी बड़ी और प्रथा के रूपमे हर साल वार्षिकी गणेश चतुर्थी मनाया गया और इसी तरह दगडूशेठ गणपति पुणे में सबसे लोकप्रिय देवता के रूप में पूजन किये जाने लगे। इस मंदिर में हर अक्षय तृतीया के दिन अंबा महोत्सव मनाया जाता है। जिसमें गणपति को लाल सुनहरे आंबो का भोग लगाया जाता है। यहां गणपति अथर्वशीर्ष के सामूहिक पाठ, स्वादिष्ट प्रसाद और व्यस्त दिन में सड़क से देवता के अच्छे दर्शन कर सकते हैं। मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक खुला रहता है, पर गणपति उत्सव के दौरान मंदिर दिन और रात भर खुले रहते हैं। यहां मंगलवार और सप्ताहांत में अधिक भीड़ होती है। भारी भीड़ का सामना किए बिना मंदिर जाने के लिए भोर और दोपहर का समय सबसे अच्छा समय होता है। यह मंदिर रेलवे स्टेशन से 5 किमी और हवाई अड्डे से 13 किमी दूरी पर स्तिथ है।
कनिपक्कम विनायक गणेश मंदिर, चित्तौड़ – Kanipakam Vinayak Ganesh Mandir, Chittoor
आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्थित कनिपकम गांव में 1000 साल पहले, तीन शारीरिक विकलांग भाई रहते थे, उसमें से एक भाई अंधा था, दूसरा गूंगा था और तीसरा बहरा था। विहारपुरी गांव के पास जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर खेती करके उन्होंने अपना मामूली जीवन यापन करते थे।
एक दिन, जब भाइयों ने एक कुएं से पानी खींच रहे थे तब वे पूरी तरह से निराश हुए तो उन्होंने पाया कि कुएँ का पानी सूख गया था। भाइयों में से एक कुएँ से नीचे उतरा और लोहे की कुदाल से कुएँ की मिट्टी खोदने लगा। तुरंत बाद ही कुएँ में पानी भरने लगा और पत्थर जैसी वस्तु से टकराया। जब भाइयों ने पत्थर के निर्माण से खून बहता हुआ देखा, तो वे आश्चर्य चकित रह गए। कुछ ही देर में खून पूरे कुएं की पानी में मिल गया और दिव्य दृष्टि आशीर्वाद से तिनों भाइयों को पूर्व शारीरिक दोषों से छुटकारा मिला।
जब इन घटनाओं की खबर ग्रामीणों के कानों तक पहुंची, तो वे कुएं की ओर दौड़े और कुएं को गहरा करने की काफी कोशिश की, पर सब नाकाम रहे तो, ग्रामीणों ने अपनी विनम्र प्रार्थना के साथ, स्वयं प्रकट मूर्ति को नारियल और अन्य प्रेम प्रसाद पेश की तो नारियल का पानी सवा एकड़ से अधिक दूरी तक एक नाले में बहने लगा। इस घटना से कनिपकम शब्द का निर्माण हुआ है। जहां कानी का अर्थ आर्द्रभूमि और पाकम का अर्थ आर्द्रभूमि में पानी का प्रवाह। और गणपति जी की यह मंदिर 11 वीं शताब्दी में चोल राजा कुलोथुंगा चोल प्रथम द्वारा निर्माण किया गया और 1336 में विजयनगर राजवंश के सम्राटों द्वारा इसे और भी बढ़ाया गया।
इस मंदिर के पीछे और भी कई कहानियां और मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश की मूर्ति का आकार रोज बढ़ता रहता है। ऐसा मानते हैं कि पिछले कई सालों से यहां मूर्ति का पेट और घुटना लगातार बढ़ता ही जा रहा है। ऐसा मानते हैं कि कनिपक्कम गणेश जी के दर्शन मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं। यह मंदिर गणेश चतुर्थी के दिन से शुरू होने वाले वार्षिक ब्रम्होत्सव के दौरान तीर्थयात्रियों से भरा रहता है। यह मंदिर हर दिन सुबह 4 बजे से शाम 9:30 बजे तक खुला रहता है और घूमने के लिए सितंबर से फरवरी तक का समय अच्छा होता है। यह मंदिर चित्तौड़ रेलवे स्टेशन से 11.5 किमी दूरी और कनिपकम का निकटतम वेल्लोर हवाई अड्डा से 41.2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
मनाकुला विनायगर गणेश मंदिर, पंडिचेरी – Manakula Vinayagar Ganesh Mandir, Puducherry
पांडिचेरी के व्हाइट टाउन में स्थित मनाकुला विनयगर कोइल मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो 500 साल से अधिक पुराना है और भगवान गणेश को समर्पित। इस क्षेत्र के सबसे पुराने मंदिरों में से एक होने के साथ, मनाकुला विनयगर कोइल को पांडिचेरी में अत्यधिक सम्मानित और सबसे लोकप्रिय हिंदू मंदिरों में गिना जाता है। मंदिर का नाम दो तमिल शब्दों मनाल और कुलम से बना हुआ है। मनाल का अर्थ रेत और कुलम का अर्थ समुद्र के पास तालाब को दर्शाते हुए मनकुला नाम हुआ है। मंदिर का यह अर्थ इसके निर्माण के समय से है जब वहां एक तालाब रेत से घिरा हुआ था।
मनाकुला विनयगर कोइल से जुड़ी किंवदंती के अनुसार लगभग 300 साल पहले, थोलाइक्कथु सिद्धर नाम के एक संत थे जिन्होंने सफलतापूर्वक इस मंदिर परिसर के अंदर समाधि की स्थापना की थी और तभी से मनकुला विनयगर मंदिर में एक शिशु को लाने पर शुभ माना जाता है।
7913 वर्ग फुट क्षेत्र में फैला, यह मंदिर एक सुंदर वास्तुशिल्प का दावा करता है जिसमें एक राजा गोपुरम, मंडपम और एक प्रहार शामिल है। वह स्थान जहां देवताओं की छवियां रखी जाती हैं। ऐसा माना गया है कि इस मंदिर को 1666 से भी पहले बनवाया गया था पांडिचेरी में स्थापित इस मंदिर में गणपति का मुंह सागर की तरफ है बहुत पुराने होने के कारण इस मंदिर को लोग बहुत मानते हैं।
ऐसा कहा जाता है कि यहां फ्रांसीसी शासन था और उस दौरान फ्रेंच लोगों ने इस मंदिर पर कई बार हमला किया। उन्होंने कई बार इस मूर्ति को समुद्र में डुबोने की कोशिश की पर वह मूर्ति हर बार बाहर आ जाती थी इस मंदिर में गणेश जी का 10 फीट ऊंचा रथ है, इसे 7 किलोग्राम सोने से बनाया गया है और हर साल दशहरे वाले दिन गणेश जी की मूर्ति को इस में रखकर भ्रमण कराया जाता है। मंदिर पूरे दिन सुबह 5:45 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक और शाम 4:00 बजे से रात 9:30 बजे तक खुला रहता है। मनाकुला विनयगर मंदिर जाने के लिए अक्टूबर से मार्च तक के महीने सबसे अच्छा समय है, इसलिए दशहरा के समय, मंदिर में भक्तों का भारी भीड़ होता है।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर रणथम्भौर, राजस्थान – Trinetra Ganesh Mandir Ranthambore, Rajasthan
इस मंदिर को भारतवर्ष का ही नहीं विश्व का पहला गणेश मंदिर माना जाता है ओर इसे रणथम्भैर मंदिर भी कहा जाता है।1299-1301 ईस्वी के बीच महाराजा हम्मीरदेव चौहान एवं दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध यहां रणथम्भौर में 9 महीने से भी ज्यादा समय तक हुआ था। उस समय दुर्ग में जब राशन सामग्री समाप्त होने लगी तब गणेश जी ने हम्मीर देव चौहान को स्वप्न में दर्शन दे कर उस स्थान पर पूजा करने को कहा, जहां आज यह गणेशजी की प्रतिमा है। हम्मीर देव वहां पहुंचे तो उन्हे वहां स्वयं प्रकट गणेश जी की एक प्रतिमा मिली तो हम्मीर देव ने यहां एक मंदिर का निर्माण कराया।
इस मंदिर में गणेश जी की मूर्ति का रंग नारंगी है, जिसमें तीन चक्षु है। यह गणेश जी की पहली त्रिनेत्री प्रतिमा है, जो स्वयं प्रकट हुए हैं। देश में ऐसी केवल चार गणेश प्रतिमाएं ही हैं। रणथम्भौर गणेश जी का यह मंदिर प्रसिद्ध रणथम्भौर टाइगर रिजर्व एरिया में स्थित है। मान्यता है कि विक्रमादित्य भी हर बुधवार को यहां पूजा करने आते थे।
यहां की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही मन मुग्ध हो जाता है। बारिश के समय जब यहां कई जगह झरने फूट पड़ते है तो पूरा इलाका रमणीय हो जाता है। यह मंदिर किले में स्थित है और यह किला संरक्षित घोषित है। यह मंदिर 1580 फीट ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है।
यहां आने वाले पत्र इस मंदिर का एक खास बात है। घर में कोई भी शुभ काम से पहले जैसे प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाता है, वैसे ही कोई भी शुभ कार्य हो और परेशानी होने पर उसे दूर करने के लिए भक्त यहां गणेश जी को पत्र भेजते हैं, तो रोजाना हजारों निमंत्रण पत्र और चिट्ठियां यहां डाक से पहुंचती है। माना जाता है, यहां सच्चे मन से मांगी हुई मुराद निश्चित रूप से पूरी होती है।
इस मंदिर के दर्शन के लिए विदेश से भी बहुत पर्यटक आते हैं। गणेश जी की यह मंदिर हजारों साल पुराना है। पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जिसमें गणेश जी के पूरे परिवार को स्थापित किया गया है। इस मंदिर में गणेश जी अपने दो पत्नी रिद्धि और सिद्धि और अपने दो पुत्र शुभ और लाभ के साथ शोभायमान हैं। यहां भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को एक बड़ा मेला आयोजित होता है जिसमें लाखों भक्त गणेश जी की दर्शन करने आते हैं। भगवान त्रिनेत्र गणेश की परिक्रमा 7 किलोमीटर के लगभग है। जयपुर से त्रिनेत्र गणेश मंदिर की दूरी करीब 142 किलोमीटर है।
उच्ची पिल्लैयार गणेश मंदिर, राँकफोट, तमिल नाडु – Ucchi Pillayar Ganesh Mandir, Rockfort Tamil Nadu
तामिलनाडु राज्य के तिरुचिरापल्ली कृषि शहर के एक पहाड़ के शिखर पर यह मंदिर बनाया गया है इस मंदिर पर पहुंचने के लिए 417 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। यहां रोजाना भगवान गणेश की छह आरतिआं की जाती है। यह 7वीं शताब्दी का मंदिर है जो 273 फीट ऊंची चट्टान के ऊपर बनाया गया है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह लगभग एक अरब साल पुराना है। पहाड़ी के ऊपर एक पुराना किला बना हुआ है, और पहाड़ी का नाम रॉकफोर्ट नाम से जाना जाता है।
रॉकफोर्ट परिसर में भगवान गणेश को समर्पित दो मंदिर हैं एक चट्टान के आधार पर और चट्टान के शीर्ष पर उच्ची पिल्लयार मंदिर। और एक शिव मंदिर भी चट्टान पर लगभग 200 कदम ऊपर है। उच्ची पिल्लयार रॉकफोर्ट मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला में बनाया गया है। यहां रोजाना भगवान गणेश की आरतियां की जाती है। इस मंदिर में कई उत्सव मनाए जाते हैं किंतु 10 दिन की गणेश चतुर्थी को यहां बेहद उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है इसे बहुत ही भव्य तरीके से सजाया जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत्य पालन करने वाले विभीषण ने रावण को हराने में भगवान राम की मदद की थी और बाद में उनके साथ उनके राज्याभिषेक के लिए अयोध्या लौट आए। उनकी प्रशंसा में, भगवान राम ने उन्हें भगवान रंगनाथस्वामी की एक मूर्ति प्रदान की और मूर्ति को जमीन पर नहीं रखने को कहा था, क्योंकि जहां जमीन पर रखा होगा यह हमेशा के लिए वहीं रहेगी। दक्षिण वापस लौटते समय, राजा विभीषण सुंदर कावेरी नदी के पार करते वक्त वहां स्नान करने का फैसला किया।
लेकिन वह इस बात को लेकर असमंजस में थे कि मूर्ति का क्या किया जाए क्योंकि वह उसे जमीन पर नहीं रख सकते थे। उस समय विभीषण ने एक चरवाहे लड़के को देखकर, उन्होंने लड़के से नहाते समय मूर्ति को पकड़ने को कहा। पर वालक ने मूर्ति को श्रीरंगम में नदी के तट पर रख दिया, क्योंकि भगवान विनायक नहीं चाहते थे कि रंगनाथस्वामी देवता लंका में असुरों की भूमि पर जाएं।
अपना स्नान पूरा करने के बाद विभीषण ने देवता को अपने स्थान से अचल पाया तो गुस्से में, उसने चरवाहे लड़के को चट्टान पर पीछा किया और उसके सिर पर मारा। तब लड़का से भगवान विनायक बनकर खुद को विभीषण को दिखाया तो वो बहुत पछताए और माफी मांगी। इसलिए आज भी उच्ची पिल्लयार मंदिर में विनायक के सिर पर एक निशान दिखाई देती है। तिरुचिरापल्ली की यात्रा में कावेरी नदी पर श्रीरंगम द्वीप पर रॉकफोर्ट और श्री रंगनाथस्वामी मंदिर निश्चित रूप से देखना चाहिए, क्यूंकि यह दुनिया के सबसे बड़े कार्यात्मक मंदिर परिसर में से एक है।
मधुर महा गणपति मंदिर, केरल – Madhur Mahaganapati Ganesh Mandir, Kerala
मधुर मंदिर कासरगोड शहर से 7 किमी दूरी पर स्थित है। मंदिर की वास्तुकला एक हाथी की पीठ के सदृश तीन स्तरीय गजप्रीष्ट प्रकार की है। विशाल गोपुरम भक्तों को आराम करने और गणपति की उपस्थिति का आनंद लेने के लिए अच्छा माहौल देता है। यह तुलुनाडु के छह गणपति मंदिरों में से सबसे प्रसिद्ध गणपति मंदिर है। इस मंदिर की कथा बेहद दिलचस्प है।
ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर मूल रूप से मदरंथेश्वर शिव जी का मंदिर था। और एक दिन स्थानीय तुलु मोगर समुदाय की मदारू नामक एक बूढ़ी महिला ने शिव लिंग की एक उद्भव मूर्ति जो एक मानव द्वारा नहीं बनाई गई थी, उसकी खोज कर रही थी। किंतु यहां की पुजारी के छोटे से बेटे ने मंदिर गर्भगृह के दक्षिणी दीवार पर भगवान गणेश जी की चित्र बनाया और कुछ समय के बाद इस मूर्ति का आकार दिन ब दिन बड़ा और मोटा होता गया, ताकि लड़के ने गणपति को बोड्डाज्जा या बोध गणेश कहा और इसके बाद से ही इस मंदिर को माना जाने लगा कि इस मंदिर का अपना महत्व और खासियत है।
किंवदंती के अनुसार टीपू सुल्तान कूर्ग, तुलुनाडु और मालाबार पर अपने आक्रमण के दौरान अडूरू महालिंगेश्वर मंदिर की तरह मंदिर को ध्वस्त करना चाहता था। लेकिन मंदिर के कुएं से पानी पीने के बाद, उसका गर्भगुड़ी पर हमला करने और उसे ध्वस्त करने का मन बदल गया। लेकिन अपने सैनिकों और इस्लामीऔं को संतुष्ट करने के लिए उसने अपनी तलवार से हमले का प्रतीक काट दिया, जो आज भी मंदिर के कुएं के चारों ओर बनी इमारत पर निशान दिखाई देता है।
यहां होने वाले विभिन्न त्योहारों के दौरान दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है। मंदिर गर्मी की छुट्टियों के दौरान युवा वत्स को वेद कक्षाएं भी प्रदान करता है जिसमें संस्कृत की मूल बातें भी शामिल होती हैं। वत्स के रहने और भोजन की व्यवस्था मंदिर के अधिकारियों द्वारा की जाती है। भक्त आमतौर पर “उदयस्तमना” के रूप में महागणपति की पूजा करते हैं।
मधुर का प्रसिद्ध प्रसाद “अप्पा” एक बहुत ही स्वादिष्ट व्यंजन है जो प्रतिदिन तैयार किया जाता है। विशेष पूजाओं में, सहस्रप्पा बहुत प्रमुख हैं। इसमें एक हजार अप्पों का चढ़ावा होता है और फिर भक्त इन सभी को घर ले जा कर खाते हैं। एक और विशेष पूजा होती है जो मूदप्पम सेवा होती है। जिसमें महागणपति की मूर्ति को अप्पम से ढकना जाता है। यहां गणेश चतुर्थी और मधुर बेदी के अवसर पर मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है।
गणेश टोक, गंगटोक, सिक्किम – Ganesh Tok, Ganesh Mandir Gangtok, Sikkim
गणेश टोक गंगटोक के एक छोटा और सुंदर मंदिर है जो भगवान गणेश को समर्पित एक छोटा मंदिर है और पसंदीदा पर्यटन स्थल है। यह इतना छोटा है कि इसमें एक समय में केवल एक ही व्यक्ति फिट हो सकता है। गणेश जी का यह मंदिर सिक्किम के गंगटोक नाथुला रोड से 7 किलोमीटर दूरी पर है। यह मंदिर 6500 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है और भगवान हनुमान को समर्पित हनुमान टोक जो गंगटोक से 11 किमी की दूरी पर 7200 फीट की ऊंचाई पर गणेश टोक के पास स्थित है।
शांत गणेश टोक खूबसूरत पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां का नजारा बर्फ से ढँके हुए पहाड़ों के शानदार दृश्य प्रस्तुत करता है और एक शांतिपूर्ण परिवेश प्रदान करता है। कंचनजंगा पहाड़ी को यहाँ से अपने वास्तविक रूप में देखा जा सकता है और यहां से पूरे शहर का नजारा भी अच्छे से दिखाई देती है। विशेष रूप से सुबह के समय यहां बहुत अच्छा लगता है। मंदिर का स्थान भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए दर्शनीय है, कारण यह है कि यहां रोजाना बहुत भीड़ देखी जाती है।
यहां सीढ़ियों के दोनों तरफ रंग बिरंगे सुगंधित झंडे बांधे जाते हैं, जिससे एक अलग प्रकार की सुन्दरता दिखाई देती है। मंदिर के सामने एक विश्राम स्थान और एक बालकनी भी है जो इस जगह का मुख्य आकर्षण है और यहां मंदिर में प्रवेश करने से पहले हाथ धोए जाते हैं एवं एक जगह में जूते सुरक्षित रखे जा सकते हैं। यह मंदिर इतनी भीड़भाड़ है कि भक्तों को भगवान गणेश जी की पूजा करने के लिए चारों ओर से नीचे जाना पड़ता है।
मंदिर से एक धार्मिक महत्व जुड़ा हुआ है जो अपने भक्तों की मनोकामना पूरी करने के लिए जाना जाता है। गणेश टोक की सुंदरता का अनुभव करने के लिए कम से कम एक बार अवश्य जाना चाहिए। यह सभी प्रकृति प्रेमियों और फोटोग्राफरों के लिए एक आदर्श स्थान है। गणेश टोक का दौरा पूरे साल किया जा सकता है, लेकिन दिसंबर-फरवरी में अच्छे मौसम के दौरान यह जगह छुट्टी की योजना बनाने का आदर्श समय है। गणेश टोक गंगटोक टाउन से केवल 6 किमी दूरी पर स्थित है।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर, राजस्थान – Moti Dungri Ganesh Mandir, Rajasthan
मोती डूंगरी मंदिर जयपुर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, जिसके चरणों में दूर-दूर से लाक्षों भक्त आते हैं। मोती डूंगरी पहाड़ी के तल पर बने होने के कारण इस मंदिर का नाम मोती डूंगरी हुई है। मोती का अंग्रेजी में अर्थ मोती होता है और स्थानीय भाषा में डूंगरी का अर्थ एक छोटी सी पहाड़ी होता है। भक्त अपने जीवन के हर महत्वपूर्ण अवसर पर जैसे कुछ खरीदना हो या शादी या फिर वीजा के लिए आवेदन करने से पहले यहां जरूर आते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां की मूर्ति 500 साल पुरानी है और उसे गुजरात से लाया गया था। इसके बाद गणेश जी के मंदिर को बनवाया गया जहां प्राचीन मूर्ति स्थापित है।
किंवदंती है कि 17 वीं शताब्दी में जब मेवाड़ के राजा घर लौट रहे थे, तो वह एक बैलगाड़ी पर भगवान गणेश की मूर्ति को अपने साथ ला रहे थे तो उन्होंने घोषणा की कि जहां भी बैलगाड़ी सबसे पहले रुकेगी, वह भगवान के लिए वहां एक मंदिर का निर्माण करेंगे और गाड़ी मोती डूंगरी की तलहटी पर रुकी जो मंदिर के स्थल बन गई। सेठ जयराम पालीवाल और महंत शिव नारायण ने इस मंदिर को 1761 में बनाकर तैयार किया था। वहां महाराजा माधो सिंह के बेटे के लिए एक स्कॉटिश महल जैसा एक परिसर बनाया गया है और मंदिर उसी के भीतर रखा गया है। आसपास का महल पर्यटकों के लिए खुला नहीं है क्योंकि यह एक निजी संपत्ति है लेकिन मंदिर सभी के लिए खुला है।
Sakshi Ganesh Mandir, Varanasi – साक्षी गणेश मंदिर, वाराणसी
साक्षी गणेश मंदिर वाराणसी की प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को 18 वीं शताब्दी में एक मराठा पेशवा द्वारा बनाया गया था। कड़ाई सस्थापत्य की दृष्टि से, इसे मंदिर नहीं कहा जा सकता है। यह अन्नपूर्णा मंदिर के पास स्थित है। इन दोनों मंदिरों के बीच की सड़क पर भगवान गणेश की एक लाल चमकदार आकृति है, जिसमें चांदी के हाथ, सूंड, पैर, कान और पोल हैं, जो फर्श पर नीचे झुके हुए हैं और मार्ग से थोड़ा ऊपर उठा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु यहां हर साल होने वाली पंचकोशी की यात्रा करता है, वह इस मंदिर में जरूर आता है और यहां गणेश जी के दर्शन जरूर करता है। पंचकोसी परिक्रमा काशी में मंदिरों की 10 मील की परिक्रमा है।
खजराना गणेश मंदिर, इंदौर – Khajrana Shree Ganesh Mandir, Indore
इंदौर एक खूबसूरत जगह है जो देश के विभिन्न जगहों से तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है। यहां का हर हिस्सा दूसरे से अलग है। इंदौर के विजय नगर से कुछ दूर पर खजराना चौक में भगवान गणेश की यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर सबसे अधिक देखे जाने वाला मंदिरों में से एक क्यों कि यह मंदिर शहर के इतिहास और धार्मिक मान्यताओं से जुडी हुई है। अब खजराना मंदिर सरकार के अधिकार में है, लेकिन मंदिर का देखभाल भट्ट परिवार के द्वारा किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि औरंगजेब स्मारक की रक्षा के अंतिम लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, मूर्ति को एक कुएं में छिपा कर रखा गया था और 1735 में, इसे कुएं से बाहर निकाला गया और 1735 में अहिल्या बाई होल्कर द्वारा एक मंदिर का निर्माण करके स्थापित किया गया, जो मराठा साम्राज्य की होलकर वंश से हैं। यहां रोज 10000 से ज्यादा लोग दर्शन के लिए आते हैं। यहां आकर लोगों की सारी इच्छाएं पूरी होती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भी इस स्थान पर आता है और किसी चीज की कामना करता है, वह बहुत ही कम समय में पूरी हो जाती है। साथ ही भक्त की सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं।
श्री वरदविनायक गणेश मंदिर, महाराष्ट्र – Shri Varad Vinayak Ganesh Mandir, Maharashtra
गणेश जी का यह मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसमें नंददीप नाम का एक दिया जलता है, जो पिछले कई सालों से जलता आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में वरद विनायक का नाम लेते ही सारी इच्छाएं और मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। माना जाता है, मंदिर की मुख्य मूर्ति 1690 ईस्वी में ढोंडू पुष्कर की खोज थी। मंदिर की वास्तुकला बहत दिलचस्प है और मंदिर परिसर के अंदर एक विशाल हॉल है जिस पर एक मीनार जैसा शिखर है और एक गर्भगृह भी है, जिसमें रिद्धि-सिद्धि से घिरे हुए एक सिंहासन पर गणेश जी की पूर्व मुखी मूर्ति है।
एक बार कुंडिन्य के राजा भीम अपनी पत्नी के साथ भगवान गणेश से मिलने के लिए सोच रहे थे, तो भीम ने तपस्या की, तो उनके भक्ति से प्रभावित होकर, भगवान गणेश ने दंपति को एक पुत्र का आशीर्वाद दिया, जिसका नाम उन्होंने रुक्मंगद रखा। बहत वर्षों बाद, राजा भीम ने अपनी सारी शक्तियाँ अपने पुत्र को सौंप दी और वानप्रस्थश्रम के मार्ग पर चलने लगे।
एक दिन रुक्मंगड शिकार की यात्रा के दौरान, वह ऋषि वाचकनवी के आश्रम में आए। ऋषि वाचकनवी उस समय नदी में स्नान कर रहे थे, और उनकी पत्नी किनारे पर खड़ी थी। पहली नजर में, उसकी पत्नी मुकुंद को राजकुमार से प्यार हो गया और उसने उसे अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए कहा। जब रुक्मंगद ने मुकुंद की इच्छा को अस्वीकार कर दिया, तो ऋषि वाचकनवी ने उन्हें शाप दिया और स्थिति इतनी विकट हो गई कि भगवान इंद्र ने रुक्मंगद का रूप धारण किया और मुकुंद की शारीरिक इच्छाओं को पूरा किया। कुछ महीनों के बाद, मुकुंद ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने ग्रुत्समदा रखा।
जब गृत्समदा को यह बात पता चला, तो उन्हें शर्म आनी शुरू हो गई और वह गणेश से राहत के लिए प्रार्थना करने लगे तो गणेश ने उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उन्हें यह कहते हुए वरदान दिया कि वसीयत में एक ऐसा पुत्र होगा जो भगवान शिव के अलावा किसी और से नहीं हारेगा। साथ ही, ग्रुतसमदा ने गणेश से वन को आशीर्वाद देने और वहां स्थायी रूप से बसने का अनुरोध किया। बाद में, एक मंदिर बनाया गया और मंदिर में एक मूर्ति स्थापित की गई। आज उस जंगल को भद्रका के नाम से जाना जाता है। वरद विनायक मंदिर सुबह 6 बजे से शाम 9 बजे तक सभी दिन खुला रहता है। भाद्रपथ, माघ और संकष्टी चतुर्थी जैसे त्योहारों में होने वाला भव्य उत्सव के दौरान मंदिर जाने का एक अच्छा समय है।
श्री मयूरेश्वर गणपति मंदिर, पुणे – Shree Mayureswar Shree Ganesh Mandir, Pune
पुणे से 80 किलोमीटर दूर इस मंदिर के निर्माण की सही तारीख अज्ञात है। पुराणों के अनुसार, यहां भगवान गणेश ने राक्षस सिंदूरासुर का वध किया था। उन्होंने मोर की सवारी करके उस राक्षस से युद्ध किया था, इसलिए यहां पर गणेश जी को मयूरेश्वर कहा जाता है। इस मंदिर में चार द्वार हैं, जिन्हें सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग का प्रतीक माना जाता है। गणेश जयंती और गणेश चतुर्थी त्योहारों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मयूरेश्वर मंदिर में आते हैं।
मोरागन संप्रदाय के लोगों को गणपति जी की पूजा करने में सर्वोत्तम माने जाते हैं, क्यूंकि वो गणेश जी को सर्वोच्च मानकर सच्ची श्रद्धा से पूजा करते हैं। इस मंदिर से गणपति के संत मोरेया गोस्वामी का खास लगाओ है ऐसा सब मानते हैं। मंदिर का विकास का मूल श्रेय पेशावर शासकों और मोरया गोस्वामी के वंशजों के कारण हुआ।
पुणे के आठ प्रदेश गणेश मंदिरों में से मोर गांव मंदिर तीर्थ यात्रा की प्रारंभिक मूल आधार है और अष्टविनायक के रूप में सर्किट मंदिर को जाना जाता है। तीर्थ यात्रा में अगर आप अंत में मोर गांव मंदिर नहीं जाते हैं तो आपका पूरा तीर्थ यात्रा अधूरा माना जाता है। पूरे अष्टविनायक सर्किट में मोरगांव मंदिर को महत्वपूर्ण मंदिर ही नहीं बल्कि पूरे भारत का सबसे महत्वपूर्ण गणेश तीर्थ कहा जाता है।