Konark Sun Temple in Hindi: भारत के उड़िशा राज्य में स्तिथ पुरी एक खूबसूरत जिला है जो अपनी प्राचीन मन्दिरों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह एक सुन्दर तीर्थस्थान होने के कारण उड़िशा तथा विश्व का मान बढ़ाता है। यहाँ बहुत सारे प्रसिद्ध मन्दिरों में से कोणार्क मन्दिर एक है, जो की सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है और विश्व के पर्यटन आकर्षणों में से एक है। यह 13 वीं शताब्दी में निर्मित उड़िशा का एक प्राचीन भव्य मन्दिर है, जो मुख्य रूप से भगवान सूर्य को समर्पित है। इस मन्दिर का बिस्मित कर देने वाला गठन शैली, वास्तुकला और बारीकी से गुंथन शिल्पकला के लिए यह विश्व में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर के आश्चर्यचकित कर देने वाला गुणवत्ता हेतु 1984 को बिश्व के सात आश्चर्य में UNESCO WORLD HERITAGE SITE में सामिल कर दिया गया है।
पूर्वी गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने सूर्य मन्दिर को 1243ई. में निर्माण किए थे। इस मन्दिर को निर्माण करने के लिए 1243ई. से 1255ई. तक यानी कि बारह साल का समय लगा था, जो की पृथ्वी इतिहास में सबसे ज्यादा समय लेने वाली मन्दिर है। दिखने में ये गहरा काला रंग का है और उस समय ये अपनी चुम्बकीय शक्ति से जहाजों को किनारों की तरफ खींच कर उसको नुकसान पहुंचाता था, इसलिए इस प्राचीन मन्दिर ब्लैक पैगौड़ा से भी जाना जाता है। कोन का अर्थ कोना यानी दो दिशा या रेखा के मिलन या फिर संगम स्थान और अर्क का अर्थ सूर्य। यह मन्दिर प्राची नदी और बंगोपसागर के संगम स्थान पर अबस्थित है। इसलिए इस जगह के नाम के अनुसार और भगवान सूर्य देव के लिए बनाते हुए इसका नाम कोणार्क हुआ है। और इसे अर्क क्षेत्र भी कहा जाता है।
पहले इस मन्दिर को समूद्र के बीच चन्द्रभागा नदी के मुहाने पर निर्माण किया गया था, पर अभी मन्दिर से समूद्र 3km दूरी पर स्थित है। ये मन्दिर एक विशाल परिसर में स्थित है जहाँ का परिवेश बहुत शान्त तथा सुन्दर है और घूमने में मन को बहुत सुखद अनुभव होता है। इसलिए हर साल लाखों के संख्या में पर्यटक इस महान् मन्दिर की आकर्षक सुन्दरता और शान्तिपूर्ण वातावरण का अनुभव करने के लिए यात्रा करना पसन्द करते हैं। अगर आप भी इस बिश्व प्रसिद्ध मंदिर की यात्रा के लिए योजना बना रहे हैं तो इस लेख को सुरु से अंत तक जर्रूर पढ़े।
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कोणार्क सूर्य मन्दिर की पौराणिक कथा – Mythological Story of Konark Sun Temple in Hindi
धर्मग्रंथ शाम्बा के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के बेटे शाम्बा अभिशाप के कारण कुष्ठ रोग से पीड़ित थे, तो ऋषि कट्टक ने शाम्बा को निरोग होने के लिए भगवान सूर्य देव की पूजा करने की सलाह दिए, तो शाम्बा ने चन्द्रभागा के तट पर बारह साल तक कठिन तपस्या करने पर सूर्य देव प्रशन्न हुए और निरोग होने की वरदान दिए, तो शाम्बा ने जब स्नान करके नदी से बाहर आए तो वह सम्पूर्ण रूप से रोगमुक्त हो चुके थे और उनके हाथ में एक पथर था, उस पथर को उन्होंने सूर्य देव के नाम से स्थापित करके एक छोटा सा मन्दिर बनवाया।
पर वहाँ सूर्य देव की पूजा की विधि किसी को भी पता नहीं था, तो उन्होंने फिर से सूर्य देव को स्मरण करके जानने को पाया की दूर पश्चिम के शाक्य देश के मागा ब्राह्मण सूर्य पूजा की विधि जानते हैं, तो उन्होंने शाक्य देश (ईरान) जा कर वहाँसे अठारह ब्राह्मण परिवार को लेकर आए और पूजा आरम्भ किए थे। इसलिए माना जाता है कि, कोणार्क मन्दिर वास्तविक में शाम्बा का विशेषता को दर्शाने के लिए बनवाया गया है।
कोणार्क सूर्य मन्दिर का इतिहास – History of Konark Sun Temple in Hindi
कोणार्क मन्दिर के इतिहास बहत रहस्यमयी और सम्वेदनपूर्ण है। पूर्व गंग वंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने जब राजा गणपति को पराजित कर के लौटे तो उनके माता ने भाव व्यक्त करके बोले कि तुम्हारे पिता लान्गुला नरसिंह देव ने पुरी शंख क्षेत्र में भगवान जगन्नाथ की भव्य मन्दिर निर्माण किये है, तो तुम अर्कक्षेत्र कोणार्क में उससे भी सुन्दर भव्य मन्दिर बनवायो। तो नरसिंह देव ने अपनी माता से इसका कारण पूछने पर माता ने बोली, “जब वो खुद माँ बन नहीं पा रही थी तब वो उस सूर्य मन्दिर जो की शाम्बा ने बनवाया था वहाँ भगवान सूर्यदेव की बहुत पूजा-अर्चना की थी और बाद में नरसिंह देव जन्म हुए थे।” इस बात से नरसिंह देव ने अपनी माता को कोणार्क में दुनिया का सबसे भव्य, सुन्दर और विशाल सूर्य मन्दिर बनवाने का वचन दिया।
राजा नरसिंह देव के आदेश से वहाँ की सदाशिव सामन्तराय महापात्र जो कि शिवे सामन्तराय से परिचित थे वह अपनी सहयोगी विशु महारणा के साथ मन्दिर की प्रतिरूप बनाकर राजा नरसिंह देव के सम्मुख जब प्रस्तुत किये तो राजा अधिभुत होकर तुरन्त मन्दिर बनवाने की आदेश दिए तो 1243ई. में मन्दिर की निर्माण कार्य आरम्भ हुआ। बारहसौ कारीगरों ने मिलकर वारह साल तक मन्दिर की निर्माण कार्य में लगे हुए थे, पर मन्दिर की कूम्बत पर कलस स्थापित नहीं हो पा रहा था तो विशु महारणा के बेटे धर्मपद ने कलस स्थापित कर के बारहसौ कारीगरों के सन्मान के लिए अपनी जान दे दि।
पर राजा नरसिंह देव को इस बात का पता नहीं था तो उन्होंने मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा कर दिये। पर इस मन्दिर में बहुत ही रहस्यमयी घटना होने लगी। मन्दिर में लगे विशाल शेर के मूर्ति तथा बहुत सारे पत्थर गिरने लगे। जब राजा नरसिंह देव को यह बात पता चला कि इस मन्दिर का पहला दिवस एक बारह साल के लड़के के मौत से सुरु हुआ है, तब इस मन्दिर में पूजा रोक दिया गया। कई सालों तक मन्दिर और चारों इलाके घने जंगलों में परिवर्तित हो कर कहीं छिप गया था। बहत सालों बाद अंग्रेजों के शासन काल में इसका अवस्थिति पता लगने पर उन्होंने इस मन्दिर का पुनरुद्धार किया था, और आज इस मन्दिर का टूटा हुआ हिस्सा ही देखने को मिलता है।
कोणार्क सूर्य मन्दिर की वास्तुकला – Architecture of Konark Sun Temple in Hindi
यह मन्दिर अपनी शिल्पकला और मूर्तिकला के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इस मन्दिर को इतनी सुन्दर कल्पना और भव्य रचना से निर्माण किया गया है कि, इसकी विशालता, निर्माण शैली तथा वास्तुकलाओं और मूर्तिकलाओं को देख कर ही पता चलता है, और इससे उड़िशा की शिल्पियों के प्रतीभाऔं का चरम सीमा को दर्शाता है।
सूर्य मन्दिर की ऊंचाई करीब 229 फिट (70) मीटर है। इस मन्दिर को तिन हिस्से में निर्माण किया गया हैं, यथा गर्भ गृह, जगमोहन और नृत्य मंदिर, जिसको किमती धातूऔं के पहीए, दिवारे और पीलार के सहायता से बनवा गया है और इसको सूर्य के रथ के रूप में कल्पना कर के एक आकर्षक रूप से निर्माण किया गया है। निर्माण के समय, इसमें प्रति दो पत्थर के बीच एक एक लौहे के प्लेट लगवाया गया था, जो कि मन्दिर को मजबूत रखने में मदद करता था।
मुख्य मन्दिर के उपर एक 52 metrics ton का बड़ा सा चुम्बक लगा हुआ था और नीचे तथा सभी तरफ भी चुम्बक लगा हुआ था, जिसके कारण भगवान सूर्य देव की स्वर्ण मूर्ति भासमान के अवस्था में था और सूर्य देव के नाभि में एक हीरा लगा हुआ था, जो कि सूर्य के किरणे पड़ने पर एक तेज सृष्टि होता था, और वो भी एक सूर्य जैसे दिखाई देती थी और माथे पर भी एक और चमकता हुआ चुम्बक लगा हुआ था। उड़िया के लोगों के एकता न रहने पर अंग्रेजों ने वह स्वर्ण मूर्ति, हीरे और सभी चुम्बक ले गए। इसलिए मन्दिर की मुख्य भाग आज नाश के कगार पर है।
सूर्य के रथ के जैसे इस मन्दिर में 9 फिट 9 इंच व्यास का 24 विशाल पहिए लगे हैं।12 जोड़े पहिये वर्ष के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं और 24 पहिए दिन के 24 घंटे का प्रतिनिधित्व करते हैं और 8 प्रमुख तीलियाँ प्रहर यानी कि तीन घंटे की अवधि को दर्शाती है और रथ के पहियों की व्याख्या जीवन का पहिया के रूप में की गई है और ये 12 जोड़ी पहिए 12 राशियों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं।
Konark Sun Temple in Hindi: प्राचीन काल में कोणार्क के पहियों का इस्तेमाल दिन के समय को जानने के लिए सूर्य घड़ी के रूप में किया जाता था। इन 24 पहियों में से 2 पहिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक का सही समय दिखाते हैं और कोणार्क के पहिये में 8 चौड़ी तीलियाँ और 8 पतली तीलियाँ हैं। 2 चौड़े तीलियों के बीच की दूरी 3 घंटे यानी कि 180 मिनट की होती है। 2 चौड़े स्पोक के बीच पतला स्पोक 1.5 घंटे यानी 90 मिनट का है और एक चौड़े स्पोक और अगले पतले स्पोक के बीच 30 मनका का समय होता है और प्रत्येक मनका 3 मिनट का प्रतिनिधित्व करता है और 7 शक्तिशाली घोड़े बहुत तेजी से उस रथ को खींच रहे हैं जो की सप्ताह के दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मुखशाला में दोनों तरफ तीन तीन मूर्तियां है, जो की इन्सान के ऊपर हाथी और हाथी के ऊपर सिंह है। इसका एक सुन्दर अर्थ भी है सिंह अर्थात गर्व और हाथी अर्थात पैसा। इसका मतलब मनुष्य के पास जब ये दोनों रहेगा तब मनुष्य का विनाश तय है, और इस मन्दिर में वालकों, युवाओं और वृद्धों के लिए अलग अलग प्रकार के शिल्पकला और मूर्तिकला बनवा गया है। कोणार्क मन्दिर परिसर में मूर्तियों को एक संग्रहालय में सजाया गया है, जो कि बहुत सुन्दर है । इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संचालित किया जाता है। यह शुक्रवार को बंद रहता है।
कोणार्क मन्दिर से जुडी जानकारिया – Information about Konark Sun Temple in Hindi
मन्दिर में जाने से पहले विश्व स्तरीय कोणार्क इंटरप्रिटेशन सेन्टर को जरूर जाना। जो की उड़िशा तथा दुनिया भर के सूर्य मन्दिर को समर्पित किया गया है और वहाँ उड़िशा के संस्कृति, वास्तुकला और इतिहास का भी वर्णन किया गया है। बारिश को छोड़कर, हर शाम मन्दिर के परिसर में प्रोजेक्टर के माध्यम से सूर्य मन्दिर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्वें दिखाया जाता है। यह 45 मिनट का प्रोजेक्सन सो है। इससे सुनने के लिए आपको एक हेडफोन दिया जाएगा, और अंग्रेजी, हिंदी और उड़िया में से जो भी भाषा में आप सुनना चाहेंगे चुन कर सुन सकते हैं।
यहाँ का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत ही सुन्दर दिखता है तो इसलिए पर्यटकों के लिए मन्दिर प्रतिदिन सूर्योदय से सूर्यास्त यानी कि 6am से 8pm तक खुला रहता है। वहाँ का सुवह की पहली किरणों को देखने के लिए और भीड़ से बचने के लिए जलद ही उठ कर घूमने में बहुत अच्छा लगता है। सूर्य मन्दिर के परिसर में एक सुन्दर और शानदार बगीचा हैं। इसमें बहुत सारे सुगंध और सुन्दर फूलों के पौधे हैं, जो कि मन्दिर की शोभा को बढ़ा रही है। फोटोग्राफी के लिए यहाँ का लोकेशन मस्त है।
मन्दिर के आस पास चंद्रभागा समुद्र तट, रामचंडी मन्दिर, द लाइट हाउस, पुराना पुरातत्व संग्रहालय, नाट्य मंडप, शहरी हाटा आदि कुछ सुन्दर पर्यटन के स्थल है । पुरी में जगन्नाथ मन्दिर है, जो कि चार धाम से एक धाम है और वो भी एक विश्व प्रसिद्ध बहुत ही सुन्दर भव्य मन्दिर है। और पुरी के रघुराजपुर गांव के चमत्कारी हस्तशिल्प को देखने भी जा सकते हैं। यहाँ विभिन्न हस्तशिल्प की स्थानीय और सरकारी दुकानें हैं, जहाँ सामूद्रीक वस्तुएं से बनी हुई चीजें, शंख, भगवान की मूर्तियां, विभिन्न चित्र कलाएं, लकड़ी और पत्थर से बनी हुई सुन्दर हस्तशिल्प के चीजें यहाँ मिलता है।
कोणार्क सूर्य मन्दिर की त्योहार – Festival of Konark Sun Temple in Hindi
राजा नरसिंह देव को जब धर्मपद के मृत्यु का खवर मिला, उसी दिन से सूर्य मन्दिर में कोई भी पूजा नहीं हुई है। पर कोणार्क में कोणार्क उत्सव मनाया जाता है। जो कि भारत के लोक शास्त्रीय और आदिवासी नृत्य और संगीत को प्रर्दशित करके विश्व में लोकप्रिय बनाना इसका लक्ष्य है। 1986 में अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्ध पद्मश्री ओडिसी नृत्य गुरु गंगाधर प्रधान ने इस उत्सव की उद्घाटन किए थे। इस उत्सव, उड़िसा में आयोजित होने वाले सभी नृत्य उत्सवों में से बड़ा है।
हर साल दिसंबर के महीने में पांच दिन तक यह उत्सव मनाया जाता है, जिसमें ओडिसी, भारतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, कथक, कुचिपुड़ी, मणिपुरी, छऊ नृत्य और स्थानीय नृत्य प्रर्दशन किया जाता है। इस प्रतियोगिता महोत्सव में 40 भारतीय और 10 विदेशी कलाकार भाग लेते हैं और वहाँ का शोभा बढ़ाते हैं। और अभी 2015 से चन्द्रभागा तट पर अंतराष्ट्रीय रेत कला महोत्सव शुरू किया गया है।
कोणार्क की प्रसिद्ध खाना – Famous Food in Konark
उड़िशा की खानपान बहुत लाजवाब है। यहाँ विभिन्न प्रकार के लोग बहुत सारे भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर खाते हैं। कोणार्क में भी विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट साकाहारी और मांसाहारी भोजन मिलता है और यहाँ बहुत सारे स्थानीय व्यंजन यथा चावल से बनी हुई पखाल, मिट्टी के घड़े से बना हुआ खासी मांस, बेसर मछली, अंडे की भुर्जी, मुंग दाल, दही बैंगन, दही मछली, दही भिंडी, दही बड़ी, तला हुआ बैंगन की सब्जी, तली हुई मछली, मसालेदार दही की चटनी, भिंडी की भाजी, आलूदम, विभिन्न प्रकार के खट्टा, मण्डिया जौ, गुलाब जामुन, छेनापोदपीठा, विभिन्न प्रकार के पिठे और विभिन्न प्रकार के सरवतें प्रस्तुत किए जाते है। यहाँ के रेस्टोरेंट में बहुत सारे सामुद्रिक और चाइनीज व्यंजन भी मिलता है।
कोणार्क सूर्य मन्दिर घूमने का सबसे अच्छा समय – Best Time to Visit Konark Temple
कोणार्क सूर्य मन्दिर पुरी का एक प्रसिद्ध मन्दिर होने के कारण यहाँ साल भर श्रद्धालु और पर्यटकों का भीड़ लगा रहता है। लेकिन कोणार्क मन्दिर दर्शन करने का सही समय नवंबर से फरवरी के बिच का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इन महीनो में यहाँ की मौसम ठंडे, सुहाना और सुखद रहता है। मार्च से जून तक गर्मी के कारण उड़िसा के तापमान लगभग 48 डिग्री तक बढ़ जाता है और जुलाई से अक्टूबर तक बहुत बारिश होती है। इसलिए पर्यटक नवंबर से फरवरी तक के समय में अच्छे से यहाँ घूम सकते हैं।
कोणार्क सूर्य मन्दिर कैसे पहुंचे – How to Reach Konark Sun Temple in Hindi
कोणार्क के सूर्य मन्दिर ओडिशा का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जो पुरी के कोणार्क में स्तिथ है। पुरी सहर तथा सूर्य मन्दिर घूमने जाने के लिए हर तरफ की सुख सुविधाएं उपलब्ध है, और किसी भी शहरों से आसानी से यहाँ पहुंचा जा सकता है। कोणार्क भुवनेश्वर-कोणार्क-पुरी त्रिकोण का हिस्सा है। यह पुरी से लगभग 55 मिनट (35km) पूर्व और राजधानी भुवनेश्वर से 1 घंटे 40 मिनट (70km) दक्षिण-पूर्व में अवस्थित है। पुरी से कोणार्क जाने के रास्ते में कोणार्क वन्यजीव अभयारण्य के साथ रामचंडी और चंद्रभागा समुद्र तटों से गुजरती है, जहाँ का नजरिया बहुत ही सुन्दर है। पुरी से कोणार्क तक प्रतिदिन बहुत बसें चलती है। नहीं तो आप टैक्सी ले सकते हैं।
वायु मार्ग : बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भुबनेश्वर शहर के केंद्र में स्थित है और कई घरेलू एयरलाइंस संचालित करता है। यह हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। बीजू पटनायक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा से कोणार्क मन्दिर 70 किलोमीटर दूरी है। यहाँ से टेक्सी या फिर ऑटो रिक्शा से कोणार्क मन्दिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग : नजदीकी रेलवे स्टेशन पुरी रेलवे स्टेशन है जो भारत के हर प्रमुख शहर से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। पुरी रेलवे स्टेशन से कोणार्क सूर्य मन्दिर 35 किलोमीटर की दुरी पर स्तिथ है। यहाँ से टेक्सी, बस और ऑटो रिक्शा द्वारा कोणार्क मन्दिर पहंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग : भुवनेश्वर से पुरी और कोणार्क जाने के लिए सार्वजनिक और निजी दोनों तरह की बहुत सारे बसें उपलब्ध है। ओडिशा पर्यटन भी सस्ती बस यात्राएं आयोजित करता है जिसमें कोणार्क भी शामिल है। आप चाहिए तो जा सकते हैं।